सनातन धर्म और प्राचीन परंपराओं में देवी-देवताओं की परिक्रमा का विशेष महत्व है। यह केवल एक धार्मिक क्रिया नहीं है, बल्कि यह ईश्वर के प्रति हमारी कृतज्ञता, भक्ति और सम्मान को व्यक्त करने का एक गहरा माध्यम है। शास्त्रों में परिक्रमा को 'प्रदक्षिणा' भी कहा गया है, जिसका अर्थ है 'दाहिनी ओर चलना'। यह माना जाता है कि परिक्रमा करने से व्यक्ति को मानसिक शांति मिलती है, उसके आसपास की नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है और उसे पुण्य की प्राप्ति होती है, जिससे उसके पाप नष्ट होते हैं।
धार्मिक और वैज्ञानिक आधार
परिक्रमा को आध्यात्मिक और वैज्ञानिक दोनों ही दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण माना जाता है। धार्मिक मान्यता है कि देव स्थान पर निरंतर मंत्रोच्चार, पूजा-पाठ, घंटा और शंख ध्वनि से एक सकारात्मक ऊर्जा का घेरा बन जाता है। जब कोई भक्त परिक्रमा करता है, तो वह इस पवित्र ऊर्जा को अपने भीतर समाहित करता है। यह ऊर्जा जीवन में सकारात्मकता, आत्मविश्वास लाती है और व्यक्ति को अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने की शक्ति देती है।
वैज्ञानिक रूप से भी, मंदिर या पवित्र स्थल की परिक्रमा से शरीर और मन पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। शांत भाव से, धीरे-धीरे चलना एक तरह का ध्यान है, जिससे मन एकाग्र होता है और तनाव दूर होता है। यह जीवन के चक्र और अनंतता का भी प्रतीक है, जहाँ भक्त यह स्वीकार करता है कि सारी सृष्टि भगवान में ही समाई है।
परिक्रमा के नियम और सही विधि
परिक्रमा करते समय कुछ महत्वपूर्ण नियमों का पालन करना अनिवार्य है, अन्यथा व्यक्ति को इसके पूर्ण लाभ से वंचित होना पड़ सकता है। शास्त्रों के अनुसार, परिक्रमा हमेशा दाहिने हाथ से शुरू करनी चाहिए, यानी घड़ी की सुई की दिशा (Clockwise) में। यह सही और शुभ तरीका माना जाता है। जो लोग बाएं तरफ से परिक्रमा करते हैं, उन्हें पुण्य नहीं मिलता। इसका कारण यह है कि प्रतिमाओं में मौजूद सकारात्मक ऊर्जा उत्तर से दक्षिण दिशा की ओर प्रवाहित होती है, और दाहिनी ओर से चलने पर भक्त इस ऊर्जा के प्रवाह के साथ चलता है, जिससे उसे अधिकतम लाभ मिलता है।
परिक्रमा हमेशा शांति और श्रद्धा भाव से करनी चाहिए। इस दौरान किसी भी प्रकार की जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए। चलते समय भगवान का स्मरण करना, नाम-स्मरण करना या मंत्रों का जाप करना सर्वोत्तम माना जाता है।
किस देवता की कितनी परिक्रमा?
सनातन धर्म में प्रत्येक देवता के लिए परिक्रमा की संख्या अलग-अलग निर्धारित की गई है, जो उनकी शक्ति और तत्व के अनुरूप है:
-
गणेश जी: तीन बार परिक्रमा शुभ मानी जाती है।
-
हनुमान जी: इनकी भी तीन परिक्रमा करने का विधान है, जिससे संकटों का नाश होता है।
-
माता दुर्गा: इनकी एक परिक्रमा करना पर्याप्त होता है।
-
सूर्य देव: सात बार परिक्रमा करना अत्यंत शुभ माना जाता है।
-
भगवान विष्णु: इनकी पांच परिक्रमा करने का विधान है।
-
शिवलिंग: शिव की परिक्रमा हमेशा 'आधी' की जाती है, जिसे 'सोमसूत्र' तक ही करके वापस मुड़ना होता है और पूरा चक्कर नहीं लगाया जाता।
-
अन्य देवी-देवता: जिन देवताओं की परिक्रमा संख्या का विशेष विधान ज्ञात न हो, उनकी तीन बार परिक्रमा की जा सकती है, क्योंकि तीन की संख्या को सामान्यतः स्वीकार किया गया है।
परिक्रमा करते समय ध्यान रखना चाहिए कि संख्या हमेशा विषम (Odd) हो, जैसे 1, 3, 5, 7 या 11।
क्या न करें
परिक्रमा के दौरान व्यर्थ की बातें नहीं करनी चाहिए और न ही जल्दबाजी में दौड़ना चाहिए। भगवान का ध्यान करते हुए, शांत मन से ही परिक्रमा करनी चाहिए। शास्त्रों में यह भी बताया गया है कि परिक्रमा करते समय देवता की पीठ की ओर पहुंचने पर रुककर उन्हें नमस्कार करना चाहिए और फिर आगे बढ़ना चाहिए।
संक्षेप में, परिक्रमा सनातन संस्कृति का एक अभिन्न अंग है, जो भक्त को ईश्वर की शक्ति और सकारात्मक ऊर्जा से जोड़ता है। नियमों का पालन करते हुए सच्ची श्रद्धा से की गई परिक्रमा निश्चित रूप से जीवन में सुख, शांति और समृद्धि लाती है।