अयोध्या न्यूज डेस्क: पूर्व मुख्य न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ ने कहा कि अयोध्या मामले का सुप्रीम कोर्ट का फैसला पूरी तरह साक्ष्यों और कानून के सिद्धांतों के आधार पर किया गया था, न कि आस्था या व्यक्तिगत विश्वास पर। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि मीडिया में उनके उस कथन को संदर्भ से अलग पेश किया गया, जिसमें उन्होंने कहा था कि ‘बाबरी मस्जिद का निर्माण अपवित्रता का एक मौलिक कार्य था’। इस उद्धरण का गलत अर्थ निकालकर उनके अयोध्या विवाद संबंधी विचारों की गलत व्याख्या की गई।
मुंबई में गुरुवार को आलोचनाओं का जवाब देते हुए चंद्रचूड़ ने कहा कि सोशल मीडिया पर लोग फैसले के कुछ हिस्सों को उठाकर बिना पूरा दस्तावेज पढ़े अपनी राय बना लेते हैं। उन्होंने बताया कि राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद मामले का फैसला 1045 पृष्ठों का था और इसके पीछे 30,000 पृष्ठों से अधिक का रिकॉर्ड था। ज्यादातर आलोचक फैसले को पढ़े बिना ही सोशल मीडिया पर राय व्यक्त कर रहे हैं। उन्होंने जोर देकर कहा कि हमें इतिहास और साक्ष्यों को ध्यान में रखते हुए निष्पक्ष दृष्टिकोण अपनाना चाहिए।
चंद्रचूड़ उस पांच न्यायाधीशों की पीठ का हिस्सा थे, जिसने अयोध्या में राम मंदिर निर्माण का मार्ग प्रशस्त किया। उन्होंने न्यायिक स्वतंत्रता पर भी बात करते हुए कहा कि सोशल मीडिया पर न्यायाधीशों को एक तरह के लेबल देने की प्रवृत्ति खतरनाक है। उन्होंने उदाहरण दिए कि कई मामलों में सरकार के खिलाफ फैसले दिए गए, जैसे चुनावी बांड, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय अल्पसंख्यक दर्जा और आधार केस। उनका कहना है कि न्यायाधीश स्वतंत्र तभी माना जाएगा जब वह बिना किसी दबाव या बाहरी विचारधारा के फैसले करे।
पूर्व CJI ने यह भी बताया कि अपने काम में शांति और संतुलन बनाए रखने के लिए वे प्रतिदिन प्रार्थना या ध्यान करते हैं। अपने मुख्य न्यायाधीश कार्यकाल के दौरान उन्होंने विभिन्न धार्मिक स्थलों का दौरा किया और नवकार मंत्र का पाठ किया। उन्होंने कहा कि किसी भी न्यायाधीश का व्यक्तिगत विश्वास या शांत चिंतन संविधान द्वारा संरक्षित है और यह उनके निष्पक्ष निर्णय लेने में मदद करता है।