अयोध्या न्यूज डेस्क: यह क्षण अयोध्या ही नहीं, पूरे देश के लिए ऐतिहासिक बनने जा रहा है। 25 नवंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राम मंदिर के शिखर पर जो विशेष ध्वज फहराएंगे, वह सिर्फ एक ध्वज नहीं बल्कि त्रेता युग की परंपरा, सूर्यवंश की विरासत और सनातन संस्कृति की वैज्ञानिकता का प्रतीक है। इस ध्वज को आधुनिक रूप देने की जिम्मेदारी ग्रेटर नोएडा वेस्ट के इतिहासकार ललित मिश्रा ने महीनों की शोध और प्राचीन ग्रंथों के अध्ययन के आधार पर निभाई, जिसने इसे और भी खास बना दिया।
22 फीट लंबे और 11 फीट चौड़े इस ध्वज में तीन मुख्य प्रतीक शामिल हैं—सनातन का आध्यात्मिक स्वर, सूर्यवंश का प्रतिनिधित्व करता सूर्य और वाल्मीकि रामायण में वर्णित पवित्र कोविदार वृक्ष। 360 डिग्री घूमने की क्षमता वाला यह ध्वज इस तरह तैयार किया गया है कि हर दिशा से उसकी भव्यता स्पष्ट दिखाई दे। इन प्रतीकों का चयन किसी सामान्य प्रक्रिया से नहीं, बल्कि गहराई से जुड़े ऐतिहासिक और आध्यात्मिक अध्ययन से हुआ है।
ध्वज में दर्शाए गए कोविदार वृक्ष की पहचान सबसे चुनौतीपूर्ण खोज रही। शास्त्रों में वर्णित यह वृक्ष आधुनिक दौर में लगभग अज्ञात हो गया था और लंबे समय तक गलत रूप से कचनार से जोड़ा जाता रहा। ललित मिश्रा ने मंत्रों और ग्रंथों का विश्लेषण, वनस्पति विज्ञानियों से बातचीत, दुर्लभ अभिलेखों का अध्ययन और विभिन्न राज्यों के वन क्षेत्रों की यात्राएं कीं, जिसके बाद इस पवित्र वृक्ष की सटीक पहचान संभव हो पाई। वे मानते हैं कि इसकी सही पहचान सनातन संस्कृति की वैज्ञानिक समझ को फिर से स्थापित करने जैसा है।
विशेष फैब्रिक से बने इस ध्वज को मौसम के हर प्रभाव से बचाने की व्यवस्था की गई है, ताकि इसकी पवित्रता सदैव बनी रहे। ललित मिश्रा ने कश्यप ऋषि के प्रयोगों की वैज्ञानिक पुष्टि के लिए जेनेटिक स्टडी का प्रस्ताव भी सरकार को दिया है। 25 नवंबर को मंदिर के शिखर पर यह ध्वज फहराया जाएगा तो वह सिर्फ धार्मिक आयोजन नहीं होगा, बल्कि प्राचीन भारतीय विज्ञान, परंपरा, शोध और आधुनिक तकनीक का अद्भुत संगम बनकर दुनिया के सामने उभरेगा।