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अफगानिस्तान: 6 साल की लड़की से 45 साल के शख्स ने किया निकाह, तालिबान ने पति के सामने रखी ये शर्त

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Posted On:Thursday, July 10, 2025

अफगानिस्तान में तालिबान के शासन के लौटने के बाद से महिलाओं और बच्चों के अधिकारों पर कई गंभीर प्रतिबंध लगाए गए हैं, जिनमें महिला शिक्षा और रोजगार पर रोक सबसे महत्वपूर्ण हैं। इसी का एक नतीजा है बाल विवाहों में भारी वृद्धि। खासकर अफगानिस्तान के हेलमंद प्रांत में हाल ही में एक 45 वर्षीय पुरुष ने मात्र 6 साल की बालिका से निकाह रचा लिया, जिसकी तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल हो गईं। इस मामले ने स्थानीय लोगों में भारी आक्रोश और चिंता पैदा कर दी है।

बाल विवाह की बढ़ती समस्या

तालिबान के शासन के बाद से बाल विवाह के मामले तेजी से बढ़े हैं। संयुक्त राष्ट्र महिला संगठन की 2024 की रिपोर्ट के अनुसार, अफगानिस्तान में बाल विवाहों में 25 प्रतिशत और बच्चों को जन्म देने की दर में 45 प्रतिशत तक की वृद्धि हुई है। यूनिसेफ की रिपोर्ट भी कहती है कि दुनिया में सबसे अधिक बाल दुल्हनें अफगानिस्तान में पाई जाती हैं। बाल विवाह को बढ़ावा देने वाले कई कारण हैं, जिनमें गरीबी, अशिक्षा, सामाजिक रूढ़िवाद और कानून की कमी प्रमुख हैं।

हेलमंद राज्य के मरजाह जिले में 45 वर्षीय व्यक्ति द्वारा 6 साल की बच्ची से निकाह रचाए जाने की घटना इसी समस्या का एक चिंताजनक उदाहरण है। मामले की जानकारी मिलने के बाद बच्ची के पिता और दूल्हे को गिरफ्तार कर लिया गया, हालांकि अभी तक इस पर कोई लिखित शिकायत दर्ज नहीं हुई है। तालिबान ने यह स्पष्ट किया कि बच्ची को कम से कम 9 वर्ष की उम्र पूरी होने के बाद ही पति के घर भेजा जा सकता है।

बाल विवाह और पैसे का लेन-देन

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, आरोपी की पहले भी दो शादियाँ हो चुकी हैं। इस बाल विवाह में आरोपी ने बच्ची के परिवार को रुपये देकर शादी को अंजाम दिया। इस तरह के मामलों में बाल विवाह सामाजिक और आर्थिक दोनों दृष्टिकोण से गहरी जड़ें जमा चुका है। गरीब परिवार अक्सर बेटियों की शादी के लिए कम उम्र में कर देते हैं, जिससे वे आर्थिक बोझ से राहत पा सकें या परिवार की सामाजिक स्थिति में सुधार हो।

तालिबान सरकार की भूमिका और कानून

अफगानिस्तान में बाल विवाह की समस्या का एक बड़ा कारण यह है कि तालिबान सरकार ने लड़कियों की शादी की न्यूनतम कानूनी उम्र निर्धारित करने वाले पुराने कानून को लागू नहीं किया है। पहले यह उम्र 16 वर्ष थी, लेकिन अब तालिबान ने इसे इस्लामी कानून के तहत छोड़ दिया है, जिसमें शादी के लिए न्यूनतम उम्र का कोई स्पष्ट प्रावधान नहीं है। इस कारण से बाल विवाह का चलन बढ़ा है और कई परिवार इसे सामाजिक और धार्मिक नियम मानकर अपना रहे हैं।

अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया और दबाव

अफगानिस्तान में महिलाओं के खिलाफ हिंसा और दुर्व्यवहार का मामला कोई नया नहीं है। अंतर्राष्ट्रीय अपराध न्यायालय (ICC) ने हाल ही में दो प्रमुख तालिबान नेताओं के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी किया है। इन नेताओं पर महिलाओं और लड़कियों के साथ दुर्व्यवहार करने के आरोप हैं, जो मानवता के खिलाफ अपराध की श्रेणी में आते हैं। इन नेताओं में तालिबान के सर्वोच्च नेता हैबतुल्लाह अखुंदजादा और मुख्य न्यायाधीश अब्दुल हकीम हक्कानी शामिल हैं।

अंतरराष्ट्रीय समुदाय और मानवाधिकार संगठन अफगान महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा के लिए लगातार दबाव बना रहे हैं, लेकिन तालिबान शासन के कठोर और रूढ़िवादी रवैये के कारण सुधार बहुत धीमी गति से ही हो पा रहे हैं।

बाल विवाह के सामाजिक और स्वास्थ्य प्रभाव

बाल विवाह न केवल एक मानवाधिकार उल्लंघन है, बल्कि यह लड़कियों के स्वास्थ्य, शिक्षा और मानसिक स्थिति पर भी गंभीर प्रभाव डालता है। कम उम्र में शादी करने वाली लड़कियों को अक्सर उच्च जोखिम वाली मातृत्व समस्याओं का सामना करना पड़ता है। वे अपनी पढ़ाई पूरी नहीं कर पातीं, जिससे उनका सामाजिक और आर्थिक विकास रुक जाता है। इसके अलावा, बाल विवाह घरेलू हिंसा, मानसिक दबाव और सामाजिक अलगाव के खतरे को भी बढ़ाता है।

भविष्य की राह

अफगानिस्तान में बाल विवाह जैसी कुप्रथाओं को रोकने के लिए ज़मीनी स्तर पर जागरूकता बढ़ाना, शिक्षा को बढ़ावा देना और महिलाओं के अधिकारों की सुरक्षा बेहद जरूरी है। हालांकि तालिबान के शासन में इस दिशा में काम करना चुनौतीपूर्ण है, फिर भी अंतरराष्ट्रीय समुदाय और स्थानीय सामाजिक संगठनों को मिलकर प्रभावी कदम उठाने होंगे।


निष्कर्ष

तालिबान के शासन में अफगानिस्तान में महिलाओं और बच्चों के अधिकारों की स्थिति चिंताजनक बनी हुई है। बाल विवाह की बढ़ती घटनाएं इस बात का सबूत हैं कि सामाजिक सुधार के लिए अभी बहुत कुछ करना बाकी है। 6 साल की बच्ची से निकाह जैसे मामले सिर्फ अफगानिस्तान ही नहीं, बल्कि दुनिया भर में बाल विवाह के खिलाफ जागरूकता बढ़ाने और कड़े कानून बनाने की जरूरत को रेखांकित करते हैं।

बाल विवाह के खिलाफ ठोस कदम उठाए बिना न तो समाज की प्रगति संभव है और न ही बच्चों का उज्जवल भविष्य सुनिश्चित किया जा सकता है। इसलिए आवश्यक है कि सरकारें, सामाजिक संस्थाएं और अंतरराष्ट्रीय समुदाय मिलकर लड़कियों के अधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करें और बाल विवाह जैसी प्रथाओं को पूरी तरह खत्म करें।


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