ताजा खबर

Film Review - मैडम चीफ मिनिस्टर



तगड़े एक्टर्स के बावजूद ‘मैडम चीफ मिनिस्टर’ में बहुत कमियां रह गई?


Posted On:Wednesday, February 24, 2021


कलाकार: ऋचा चड्ढा, सौरभ शुक्ला, अक्षय ओबेरॉय, मानव कौल व शुभ्रज्योति आदि।
लेखक, निर्देशक: सुभाष कपूर
निर्माता: भूषण कुमार, नरेन कुमार, डिंपल खरबंदा व विनोद भानुशाली आदि।


बतौर फिल्मकार जिन लोगों की फिल्मों को लेकर उत्सुकता बनी रहती है, मौजूदा दौर के उन गिनती के निर्देशकों में सुभाष कपूर का नाम शुमार होता है। पत्रकार रहे हैं। नजर पैनी रही है और उनकी कहानियों में राजनीतिक व्यंग्य, मानवीय संवेदनाएं और सामाजिक सरोकार सब एक दूसरे के समानांतर चलते हैं। बीता समय उनका कुछ कठिन रहा है। फिल्म ‘मैडम चीफ मिनिस्टर’ सुभाष का सिनेमा में नया प्रस्थान है। इस बार सुभाष ने दाएं बाएं गेंद न घुमाकर सीधे गोल की तरफ निशाना लगाया है। कहानी उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती के शीर्ष पर पहुंचने के किस्सों की पतंग बनाकर उड़ने की कोशिश करती हैं, बस मांझा सुभाष कपूर का आधी उड़ान में सद्दी पर आ जाता है। फिर भी, फिल्म मनोरंजक है और आखिर तक दर्शकों को बांधे रखने की पूरी कोशिश करती है।
 
लाइब्रेरी में काम करने वाली तारा को कॉलेज के होनहार स्टूडेंट लीडर इंदु से मोहब्बत है। इंदु को तारा के पेट से होने का पता चलता है तो वह गर्भ गिरा देने के लिए उसे अपने चेले के साथ जाने को कहता है। बरसों पहले तारा की दो बहनों को उसकी दादी जहर चटाकर मार चुकी होती है। तारा जिस दिन पैदा होती है, उसका पिता रूपराम अगड़ों के हाथों इस वजह से मारा जाता है कि उनके दरवाजे के सामने से एक दलित ने घोड़ी पर दूल्हा बनकर निकलने की हिम्मत कर ली। तारा को मास्टरजी का साथ मिलता है। वह राजनीति का सितारा साबित होती है। बड़े बड़े दिग्गजों के वह अपने दफ्तर में मुंडन कर देती है। कहानी राजनीति की सामाजिक धारा से होकर व्यक्गित जीवन के कुएं में जैसे ही गिरती है, मामला लोटन कबूतर हो जाता है।
 
फिल्म ‘मैडम चीफ मिनिस्टर’ उन सबको अच्छे से समझ आती है जिन्होंने मायावती का सियासी संघर्ष, उत्थान और पतन पहले से जाना है। कहानी ये मायावती की तो नहीं है लेकिन उनके नारों से लेकर जन्मदिन पर सजने तक की तमाम घटनाएं फिल्म में प्रमुखता पाती हैं और कहानी का तंबू साधने वाले बांसों का काम भी करती है। पटकथा की व्याकरण में इन्हें टेंटपोल कहते हैं। बतौर निर्देशक सुभाष कपूर की साख ‘फंस गया रे ओबामा’, ‘जॉली एलएलबी’ और ‘जॉली एलएलबी 2’ जैसी फिल्मों ने बनाई है। आगे उन्हें आमिर खान के साथ ‘मुगल’ भी बनानी है। हर हिट फिल्म से पहले वह एक वार्मअप फिल्म बनाते हैं।
 
फिल्म ‘मैडम चीफ मिनिस्टर’ भी सुभाष कपूर की वार्मअप फिल्म है। उस्तरा उन्होंने इसमें भी पत्थर पर तबीयत से घिसा है। ‘जो न करें तुमसे प्यार, उनको मारो जूते चार’ और ‘यूपी में जो मेट्रो बनाता है, वो हारता है और जो मंदिर बनाता है वो जीतता है’ सीट में कसमसाने पर मजबूर कर देते हैं। अभिनय के लिहाज से ये फिल्म ऋचा चड्ढा और अक्षय ओबेरॉय की है। ऋचा चड्ढा को शुरू में ब्वॉय कट बालों के साथ देखना थोड़ा असहज लगता है लेकिन जैसे जैसे उनका किरदार नए नए रंगों में डुबकी लगाता जाता है। यह रंगरूप सहज होता जाता है। गर्भवती युवती पर बरसती लातों से निकलकर तारा का किरदार जब क्लाइमेक्स में अपने पति को व्हीलचेयर पर पेशकर ‘विक्टिम कार्ड’ खेलता है तो ये पूरा ग्राफ उनके अभिनय की सशक्त बानगी बन जाता है। फिल्म ‘मैडम चीफ मिनिस्टर’ ऋचा चड्ढा के करियर का एक बेहतरीन पड़ाव है। उनका अभिनय यहां अपने उत्कर्ष पर है।
 
लाइब्रेरी में काम करने वाली तारा को कॉलेज के होनहार स्टूडेंट लीडर इंदु से मोहब्बत है। इंदु को तारा के पेट से होने का पता चलता है तो वह गर्भ गिरा देने के लिए उसे अपने चेले के साथ जाने को कहता है। बरसों पहले तारा की दो बहनों को उसकी दादी जहर चटाकर मार चुकी होती है। तारा जिस दिन पैदा होती है, उसका पिता रूपराम अगड़ों के हाथों इस वजह से मारा जाता है कि उनके दरवाजे के सामने से एक दलित ने घोड़ी पर दूल्हा बनकर निकलने की हिम्मत कर ली। तारा को मास्टरजी का साथ मिलता है। वह राजनीति का सितारा साबित होती है। बड़े बड़े दिग्गजों के वह अपने दफ्तर में मुंडन कर देती है। कहानी राजनीति की सामाजिक धारा से होकर व्यक्गित जीवन के कुएं में जैसे ही गिरती है, मामला लोटन कबूतर हो जाता है।
 
फिल्म ‘मैडम चीफ मिनिस्टर’ उन सबको अच्छे से समझ आती है जिन्होंने मायावती का सियासी संघर्ष, उत्थान और पतन पहले से जाना है। कहानी ये मायावती की तो नहीं है लेकिन उनके नारों से लेकर जन्मदिन पर सजने तक की तमाम घटनाएं फिल्म में प्रमुखता पाती हैं और कहानी का तंबू साधने वाले बांसों का काम भी करती है। पटकथा की व्याकरण में इन्हें टेंटपोल कहते हैं। बतौर निर्देशक सुभाष कपूर की साख ‘फंस गया रे ओबामा’, ‘जॉली एलएलबी’ और ‘जॉली एलएलबी 2’ जैसी फिल्मों ने बनाई है। आगे उन्हें आमिर खान के साथ ‘मुगल’ भी बनानी है। हर हिट फिल्म से पहले वह एक वार्मअप फिल्म बनाते हैं।
 
फिल्म ‘मैडम चीफ मिनिस्टर’ भी सुभाष कपूर की वार्मअप फिल्म है। उस्तरा उन्होंने इसमें भी पत्थर पर तबीयत से घिसा है। ‘जो न करें तुमसे प्यार, उनको मारो जूते चार’ और ‘यूपी में जो मेट्रो बनाता है, वो हारता है और जो मंदिर बनाता है वो जीतता है’ सीट में कसमसाने पर मजबूर कर देते हैं। अभिनय के लिहाज से ये फिल्म ऋचा चड्ढा और अक्षय ओबेरॉय की है। ऋचा चड्ढा को शुरू में ब्वॉय कट बालों के साथ देखना थोड़ा असहज लगता है लेकिन जैसे जैसे उनका किरदार नए नए रंगों में डुबकी लगाता जाता है। यह रंगरूप सहज होता जाता है। गर्भवती युवती पर बरसती लातों से निकलकर तारा का किरदार जब क्लाइमेक्स में अपने पति को व्हीलचेयर पर पेशकर ‘विक्टिम कार्ड’ खेलता है तो ये पूरा ग्राफ उनके अभिनय की सशक्त बानगी बन जाता है। फिल्म ‘मैडम चीफ मिनिस्टर’ ऋचा चड्ढा के करियर का एक बेहतरीन पड़ाव है। उनका अभिनय यहां अपने उत्कर्ष पर है।
 
फिल्म ‘मैडम चीफ मिनिस्टर’ को ऋचा चड्ढा के अभिनय के अलावा अक्षय ओबेरॉय और शुभ्रज्योति के अभिनय के लिए भी याद रखा जाएगा। अक्षय ओबेरॉय के चेहरे पर दिखने वाला काइयांपन भले अभी उन्हें खांटी विलेन जितना खूंखार न बनाता हो लेकिन काम उनका दमदार है। शुभ्रज्योति ने फिल्म ‘आर्टिकल 15’ के बाद एक बार फिर प्रभावित किया है। उनमें लंबे समय तक सिनेमा में टिके रहने का दमखम भी दिखता है। मास्टरजी के किरदार में सौरभ शुक्ला हैं। वह फिल्म के सबसे सीनियर कलाकार भी हैं और अपने अभिनय से वह ये बात साबित भी करते हैं। सौरभ शुक्ला को सुभाष कपूर ने ही जस्टिस त्रिपाठी के रूप न्यू मिलेनियल्स के लिए रिन्यू किया था। मास्टरजी का किरदार भी सौरभ ने बेहतरीन तरीके से निभाया है। फिल्म की सिनेमैटोग्राफी यूपी का रंग रोगन कैनवस तक लाने में कामयाब है। एडीटिंग काफी टाइट है और फिल्म की रफ्तार बनाए रखती है।
 
फिल्म ‘मैडम चीफ मिनिस्टर’ की कमजोर कड़ियां दो हैं, एक तो इसका संगीत। एक म्यूजिक कंपनी की फिल्म होने के बावजूद इस फिल्म के संगीत पर कायदे से काम नहीं हुआ है। उत्तर प्रदेश की राजनीति तो शुरू से म्यूजिकल रही है, ऐसे में यहां कुछ अच्छा संगीत अपेक्षित भी था। दूसरी कमजोर कड़ी है फिल्म की, इसकी पटकथा। इंटरवल तक रफ्तार से भागती फिल्म दूसरे हाफ में सुस्त इसलिए हो जाती है क्योंकि कहानी सामाजिक सरोकारों से निकलकर तारा के निजी जीवन में प्रवेश कर जाती है। सियासी कहानियों में व्यक्तिगत और सार्वजनिक जीवन का संतुलन बनाना ही असली खेल होता है, फिल्म ‘मैडम चीफ मिनिस्टर’ इस मामले में चूक जाती है।
 
 


अयोध्या और देश, दुनियाँ की ताजा ख़बरे हमारे Facebook पर पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें,
और Telegram चैनल पर पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें



You may also like !


मेरा गाँव मेरा देश

अगर आप एक जागृत नागरिक है और अपने आसपास की घटनाओं या अपने क्षेत्र की समस्याओं को हमारे साथ साझा कर अपने गाँव, शहर और देश को और बेहतर बनाना चाहते हैं तो जुड़िए हमसे अपनी रिपोर्ट के जरिए. ayodhyavocalsteam@gmail.com

Follow us on

Copyright © 2021  |  All Rights Reserved.

Powered By Newsify Network Pvt. Ltd.