अयोध्या न्यूज डेस्क: अयोध्या के श्रीराम जन्मभूमि के मुख्य पुजारी आचार्य सत्येंद्र दास का निधन हो गया। वे 1992 से रामलला की पूजा-अर्चना और देखभाल कर रहे थे। 6 दिसंबर 1992 को जब बाबरी मस्जिद का ढांचा गिराया गया था, तब वे वहां मौजूद थे और रामलला की मूर्ति को सुरक्षित स्थान पर ले जाने वाले प्रमुख व्यक्ति थे। श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट ने उन्हें आजीवन राम मंदिर का मुख्य पुजारी नियुक्त किया था।
आचार्य सत्येंद्र दास का जन्म संत कबीर नगर में हुआ था। पहली बार वे 1949 में अपने पिता अभिराम दास के साथ अयोध्या आए थे। इसके बाद 1958 में वे दोबारा अयोध्या लौटे और यहीं रहकर अपनी पढ़ाई जारी रखी। इसी दौरान उन्होंने संन्यासी जीवन अपनाने का निर्णय लिया और अपने परिवार को इस बारे में सूचित किया। उनके पिता ने भी उनके फैसले का समर्थन किया और वे पूरी तरह अध्यात्म की ओर बढ़ गए।
1975 में आचार्य सत्येंद्र दास ने एक संस्कृत विद्यालय से अपनी शिक्षा पूरी की और उसके बाद एक संस्कृत डिग्री कॉलेज में असिस्टेंट टीचर के रूप में नौकरी करने लगे। उस समय उनकी तनख्वाह मात्र 75 रुपये प्रति माह थी। उन्होंने 16 वर्षों तक शिक्षक के रूप में काम किया और इस दौरान धार्मिक गतिविधियों में भी सक्रिय रहे।
1 मार्च 1992 को आचार्य सत्येंद्र दास को श्रीराम जन्मभूमि का मुख्य पुजारी बनाया गया। उस समय उनकी पहली सैलरी 100 रुपये थी। उन्होंने बताया था कि पुजारी बनने के पहले नौ महीने तक सब कुछ सामान्य था, लेकिन 6 दिसंबर 1992 को जब बाबरी मस्जिद का ढांचा गिराया गया, तब वे वहीं मौजूद थे। उन्होंने खुद बताया था कि कैसे वे रामलला की मूर्ति को लेकर दौड़ पड़े थे ताकि उसे कोई नुकसान न पहुंचे।
राम मंदिर बनने के बाद जनवरी 2024 में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के बाद आचार्य सत्येंद्र दास का वेतन बढ़ाकर 38,500 रुपये कर दिया गया था। उन्होंने दिसंबर 2024 में श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट से स्वयं को कार्यमुक्त करने का अनुरोध किया था, जिसे स्वीकार कर लिया गया था। ट्रस्ट ने उन्हें आजीवन वेतन देने का निर्णय लिया था। अब 87 वर्ष की आयु में उन्होंने अंतिम सांस ली, जिससे अयोध्या में शोक की लहर दौड़ गई।