अयोध्या न्यूज डेस्क: पूर्व मुख्य न्यायाधीश (CJI) डी वाई चंद्रचूड़ ने राम मंदिर मामले में आए फैसले को लेकर हो रही आलोचनाओं पर अपनी बात रखी। टाइम्स नेटवर्क इंडिया इकोनॉमिक कॉन्क्लेव में बोलते हुए उन्होंने कहा कि कई आलोचकों ने 1000+ पन्नों के फैसले को पूरी तरह पढ़ा भी नहीं है। उन्होंने स्पष्ट किया कि यह फैसला गहन सबूतों और तथ्यों के विश्लेषण पर आधारित था।
फैसले के तथ्यों पर जोर
चंद्रचूड़ ने कहा कि कुछ लोग फैसले पर बिना पढ़े ही सवाल खड़े करते हैं। उन्होंने कहा, "1000 पन्नों के फैसले में सबूतों का विस्तार से विश्लेषण है। यह दावा करना गलत होगा कि फैसला सबूतों पर आधारित नहीं था।" उन्होंने भारतीय न्यायिक प्रणाली की जटिलताओं और उसकी भूमिका पर भी बात की।
न्यायाधीश की जिम्मेदारी
पूर्व CJI ने बताया कि उनके करियर में इलाहाबाद हाई कोर्ट, सुप्रीम कोर्ट और फिर CJI बनने तक हर भूमिका में चुनौतियां रहीं। उन्होंने कहा कि न्यायाधीशों का कर्तव्य समाज के भविष्य को आकार देना और संविधान को सामाजिक परिवर्तन के साधन के रूप में देखना है।
फैसले के लेखकत्व पर
अयोध्या मामले पर पूछे गए सवाल में चंद्रचूड़ ने बताया कि फैसले पर पांचों जजों ने हस्ताक्षर किए थे। उन्होंने कहा कि इस फैसले को लेखक के नाम से जोड़ने का फैसला नहीं लिया गया ताकि यह सामूहिक प्रयास का प्रतीक बने। उन्होंने कहा, "अयोध्या विवाद ने समाज को लंबे समय तक बांटा था। लेखकत्व न देकर हमने शांति और स्थिरता का संदेश दिया।"
धर्मनिरपेक्षता पर आलोचना का जवाब
जस्टिस नरीमन की धर्मनिरपेक्षता पर की गई टिप्पणी पर चंद्रचूड़ ने जवाब दिया। उन्होंने कहा कि नरीमन एक स्वतंत्र नागरिक हैं और अपनी राय रखने का अधिकार रखते हैं। हालांकि, उन्होंने यह भी जोड़ा कि न्यायाधीश होने के नाते वह फैसले की आलोचना करने की स्थिति में नहीं हैं।
अभिव्यक्ति की आजादी का प्रतीक
चंद्रचूड़ ने कहा कि नरीमन की आलोचना इस बात का प्रमाण है कि भारत में अभिव्यक्ति की आजादी और धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत जीवित हैं। उन्होंने कहा, "विवेक की स्वतंत्रता और संवाद हमारे लोकतंत्र की पहचान है।"
सामूहिक निर्णय का महत्व
अंत में, पूर्व CJI ने कहा कि अयोध्या मामले का फैसला न्यायपालिका के सामूहिक प्रयास का उदाहरण है। यह फैसला न केवल न्यायिक प्रक्रिया का हिस्सा था, बल्कि समाज में शांति और स्थिरता बनाए रखने का भी प्रयास था।