अयोध्या न्यूज डेस्क: अयोध्या में श्रीराम मंदिर के निर्माण के बाद से फूलों की मांग तेजी से बढ़ी है। इसी जरूरत को पूरा करने के लिए सुल्तानपुर के एक किसान ने जरबेरा की खेती शुरू की है। यह किसान अयोध्या, दिल्ली के अक्षरधाम और अन्य प्रमुख मंदिरों में जरबेरा फूलों की सप्लाई करता है। जरबेरा फूल अपनी आकर्षक खूबसूरती और सजावट के लिए खासा लोकप्रिय है।
जरबेरा फूल की विशेषताएं
जरबेरा का फूल देखने में बेहद सुंदर और सजावट के लिए आदर्श होता है। इसका उपयोग शादी-विवाह से लेकर मंदिरों की सजावट में बड़े पैमाने पर होता है। खास बात यह है कि जरबेरा की खेती पूरे साल की जा सकती है और यह 15 से 20 दिनों तक ताजा रहता है। इस फूल की खेती नेट शेड में की जाती है ताकि इसे मौसम की कठोर परिस्थितियों जैसे कोहरा, पाला, या अत्यधिक धूप से बचाया जा सके।
खेती की प्रक्रिया
पॉलीहाउस केयर टेकर डॉ. तुषार पवार ने बताया कि 4000 वर्ग फीट के पॉलीहाउस में उन्होंने 25000 से अधिक जरबेरा पौधे लगाए हैं। सबसे पहले खेत की जुताई कर उसमें उर्वरक और वर्मी कम्पोस्ट मिलाकर मिट्टी तैयार की जाती है। फिर ऊंचे-ऊंचे बेड बनाए जाते हैं और पौधों को 23 सेंटीमीटर की दूरी पर रोपा जाता है। कॉलम के बीच की दूरी 40 सेंटीमीटर रखी जाती है, जिससे पौधों को पर्याप्त जगह और पोषण मिल सके।
पैदावार और मुनाफा
सुल्तानपुर के बल्दीराय तहसील के डोमियारा गांव में स्थापित पॉलीहाउस के संरक्षक डॉ. आशीष झा ने बताया कि 25000 जरबेरा पौधों से हर साल लगभग सात लाख फूलों की पैदावार होती है। इन फूलों की आपूर्ति अयोध्या के राम मंदिर, काशी विश्वनाथ मंदिर और अन्य प्रमुख धार्मिक स्थलों पर की जाती है। जरबेरा की खेती किसानों के लिए लाभदायक व्यवसाय साबित हो रही है।
मुनाफे का सौदा
जरबेरा फूल की खेती, अगर सही तरीके से की जाए, तो यह किसानों के लिए बेहद फायदेमंद साबित हो सकती है। इसकी लगातार बढ़ती मांग और सालभर खेती की जा सकने वाली क्षमता इसे एक मुनाफे का सौदा बनाती है। डॉ. झा और उनकी टीम की मेहनत से यह साबित हो चुका है कि जरबेरा फूलों की खेती किसानों की आर्थिक स्थिति को सुधारने का एक मजबूत जरिया बन सकती है।